सावन के इंतज़ार में है ये पागल कवि !
जैसे चाँदनी के इंतज़ार में हो रवि !
क्यों कुछ बूंदों को सावन समझ बैठे है सभी !
पर हर बूँद में " सावन " है समझ गया है ये कवि !
खो दिया सावन हमने , " सावन " के इंतज़ार में .......
आज मेरी आँखों में सावन है , इसे खोऊ कैसे ....?
तू ही बता में सावन होकर "सावन" में रोऊ कैसे .....??
Monday, May 10, 2010
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