ऐसा क्यों है ?
मेरी पलकों तक आना एहसान है तुम्हारा,
पर अब तक आँखों में रुका क्यों है ?
गमो से मुझे कोई शिकवा नहीं ,
पर मेरे हिस्से ही दर्द ज्यादा क्यों है ?
जिंदगी तू मुझसे ज्यादा जिए जा रही है ,
और मुझसे किये जा रही है वादे पे वादे ,
पर अब तेरा ही ख़ुदकुशी का इरादा क्यों है ?
सब मिले मुझे यही दास्ताँ लिए हुए ,
अपनी हिम्मत को उन्हें दिखाता हूँ
हर कोई तेरा रास्ता ही बताता क्यों है ?
प्यार रिश्वत जैसी है ,
नज़र आती है सभी आँखों में ,
तो हर सख्श मुझे ही आजमाता क्यों है ?
तेरी बनायीं जन्नत में ,
मुद्दत के बाद खुशियों की आंधी आती है ,
और तभी आंख में कुछ गिर जाता क्यों है ?
रौशनी दिखा कर ख़ुशी देता है पल की,
और अगले ही पल
उसी रौशनी से मेरा घर जलाता क्यों है ?
मुझे अपने पास बुलाता नहीं है
खुदा तुझे तेरा घर इतना प्यारा है ,
तो हर युग में इस दुनिया में आता क्यों है ?
किस्से करू में ये शिकायत ,
" इस ज़माने का और मेरा खुदा तू ही क्यों है " ?
गर है तू ही मेरा खुदा ,
तो मुझे एक बार रुलाता क्यों नहीं है ?
फिर मुझे चुप कराकर ,
अपनी ही गोद में सुलाता क्यों नहीं है ??
Monday, May 10, 2010
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