Monday, May 10, 2010

कह न पाए थे हम.....


कह न पाए थे हम.....





* दुनिया की सच्चाई को दुनिया के सामने ला पाऊ !
दुनिया का न होकर भी ,इस दुनिया में समां जाऊ !
अब सोच रहा हू कि , इस दुनिया में दिल लगाऊ !
या पीर से भरे इस दिल में एक नई दुनिया बनाऊ ?? !!


* किसी को घर मिला हिस्से में , तो कोई दुकान आई !
मैं घर में सबसे अकेला था , मेरे हिस्से " माँ" आई !!


* अपने चहेरे पे जो जाहिर है उसे छुपाये कैसे ?
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आए कैसे ?



* सदियों से अपनी तन्हाई हमने दुनिया से छुपाई है !
ऐसा कोई पल नही ,जब तेरी याद नही आई है !
तुझे खोने की , मायूसी आज भी दिल में छाई है !
सब कुछ होते हुए भी , मीलों तक फैली हुई तन्हाई है !
प्यार है तुझे भी तभी तू शब्द बन मेरी कविता में आई है !
बेवफाई तो अब है , कि तू किसी और कि भी नही हो पाई है !!


* खुश हू क्यूकि आज तू नही , तो तेरी याद ही सही !
मान लिया मेने कि मैं ग़लत , पर क्या तू ही सही ? !!

सावन के इंतज़ार में है ये पागल कवि !

सावन के इंतज़ार में है ये पागल कवि !
जैसे चाँदनी के इंतज़ार में हो रवि !
क्यों कुछ बूंदों को सावन समझ बैठे है सभी !
पर हर बूँद में " सावन " है समझ गया है ये कवि !
खो दिया सावन हमने , " सावन " के इंतज़ार में .......
आज मेरी आँखों में सावन है , इसे खोऊ कैसे ....?
तू ही बता में सावन होकर "सावन" में रोऊ कैसे .....??

ऐसा क्यों है ?

ऐसा क्यों है ?

मेरी पलकों तक आना एहसान है तुम्हारा,
पर अब तक आँखों में रुका क्यों है ?


गमो से मुझे कोई शिकवा नहीं ,
पर मेरे हिस्से ही दर्द ज्यादा क्यों है ?


जिंदगी तू मुझसे ज्यादा जिए जा रही है ,
और मुझसे किये जा रही है वादे पे वादे ,
पर अब तेरा ही ख़ुदकुशी का इरादा क्यों है ?


सब मिले मुझे यही दास्ताँ लिए हुए ,
अपनी हिम्मत को उन्हें दिखाता हूँ
हर कोई तेरा रास्ता ही बताता क्यों है ?


प्यार रिश्वत जैसी है ,
नज़र आती है सभी आँखों में ,
तो हर सख्श मुझे ही आजमाता क्यों है ?


तेरी बनायीं जन्नत में ,
मुद्दत के बाद खुशियों की आंधी आती है ,
और तभी आंख में कुछ गिर जाता क्यों है ?


रौशनी दिखा कर ख़ुशी देता है पल की,
और अगले ही पल
उसी रौशनी से मेरा घर जलाता क्यों है ?


मुझे अपने पास बुलाता नहीं है
खुदा तुझे तेरा घर इतना प्यारा है ,
तो हर युग में इस दुनिया में आता क्यों है ?


किस्से करू में ये शिकायत ,
" इस ज़माने का और मेरा खुदा तू ही क्यों है " ?


गर है तू ही मेरा खुदा ,
तो मुझे एक बार रुलाता क्यों नहीं है ?
फिर मुझे चुप कराकर ,
अपनी ही गोद में सुलाता क्यों नहीं है ??