Thursday, July 22, 2010

हुमायूं नजर पर नहीं पड़ी खुफिया नजर

भारतीय सम्पत्ति बेच रहा पाकिस्तानी नागरिक
३५ करोड़ की शत्राु सम्पत्ति बेचकर पाकिस्तान भाग गया देशद्रोही

पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से दर्जन भर आतंकवादियों को प्रदेश की सीमा में गिरफ्तार किया गया है उससे तो यही लगता है कि आतंकवादियों ने उत्तर-प्रदेश को भी अपनी सुरक्षित शरणस्थली बना रखी है। प्रदेश का खुफिया विभाग भी इस आशंका से इंकार नहीं करता लेकिन जिस तरह से खुफिया विभाग और सूबे की पुलिस आतंकवादियों को पनाह देने वालों और विदेशियों की आवाजाही के प्रति संवेदनशून्य बनी हुई है वह एक चिंता का विषय हो सकता है। विगत वर्ष आठ मार्च को प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर के थाना कोतवाली में एक पाकिस्तानी नागरिक सहित उसके देशद्रोही बहनोई जमीरुल हक के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत हुआ था। गिरफ्तारी से बचने के लिए जमीरुल हक ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जमीरुल हक को आदेशित किया था कि पन्द्रह दिन के भीतर वह समस्त दस्तावेज जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और जांच अधिकारी को प्रस्तुत करे। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो उसकी गिरफ्तारी सुनिश्चित होगी। चौंकाने वाला पहलू यह है कि जमीरुल हक कोर्ट के आदेशों की परवाह किए बेखौफ कानपुर में ही रह रहा है। उसने न तो कोई दस्तावेज सम्बन्धित अधिकारियों को सौंपे और न ही स्थानीय पुलिस ने ही उसे गिरफ्तार करने में कोई रुचि दिखायी।
लखनÅ। उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रमुख लाख दावे कर लें कि प्रदेश का खुफिया तंत्रा चुस्त-दुरुस्त है लेकिन हकीकत इन दावों से कोसों दूर है। पिछले तीन वर्ष के दौरान प्रदेश में जितनी घटनाएं हो चुकी हैं उनसे साफ जाहिर है कि सूबे के खुफिया तंत्रा में या तो सेंध है या फिर भ्रष्टाचार के घुन ने इस तंत्रा को अपनी चपेट में ले रखा है। पिछले काफी समय से औद्योगिक नगरी कानपुर में पाकिस्तान और ब्रिटेन सहित भारत के पासपोर्ट पर एक शख्स शत्राु सम्पत्तियों को बेचने में जुटा है लेकिन स्थानीय प्रशासन उसका बाल-बांका तक नहीं कर सका। वह बेखौफ पाकिस्तान से कानपुर तक सफर तय करता है और करोड़ों की सम्पत्तियों का वारा-न्यारा कर निकल जाता है। इस शख्स की गतिविधियों की जानकारी तमाम शिकायतों के आधार पर प्रदेश के स्थानीय प्रशासन, खुफिया तंत्रा और पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी है। विगत जून माह में पुख्ता जानकारी के आधार पर इंटेलीजंेस की टीम ने इस शख्स को भारत आते ही गिरफ्तार करने का दावा किया था। फर्जी तरीके से तीन-तीन देशों की नागरिकता रखने वाला हुमायूं नजर नाम का यह देशद्रोही पिछले दो महीनों के दौरान कानपुर के कई चक्कर लगाकर लगभग ३५ करोड़ की शत्राु सम्पत्ति बेचकर आराम से पाकिस्तान लौट गया और खुफिया तंत्रा को भनक तक नहीं लग सकी। जानकार सूत्राों के दावों की मानें तो कानपुर के अतिविशिष्ट इलाके में किराए के फ्लैट में रहने वाले इस देशद्रोही के बारे में कुछ लोगों ने स्थानीय प्रशासन को भी अवगत कराया था, लेकिन जिस तरीके से वह कानपुर आकर आराम से पाकिस्तान लौट गया उससे साफ जाहिर है कि प्रदेश के खुफिया तंत्रा में भ्रष्टाचार ने घर कर रखा है। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कानपुर पुलिस के कुछ अधिकारी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि हुमायूं नजर के प्रगाढ़ सम्बन्ध पाकिस्तान आर्मी के कुछ अफसरों से भी हैं।
गौरतलब है कि पाकिस्तानी नागरिक हुमायूं नजर और उसके परिवार के खिलाफ थाना चकेरी में जाजमÅ की पायनियर टेनरी को फर्जी तरीके से बेचने का मामला दर्ज है। यह मामला केडीए कालोनी के अशरफ महमूद की शिकायत पर दर्ज किया गया था। अशरफ का आरोप है कि देशद्रोह से जुडे+ इस मामले को चकेरी थाने की पुलिस दर्ज करने में आनाकानी कर रही थी लिहाजा उन्हें डीआईजी से सम्पर्क साधना पड़ा। डीआईजी के आदेश पर एस क्राइम और एलआईयू की रिपोर्ट के बाद मामला दर्ज किया गया। मामला दर्ज होने के अगले दिन हुमायूं नजर के सम्बन्ध में कई ऐसे मामलों का खुलासा हुआ जिनसे प्रदेश की सुरक्षा पर खतरा साबित हो सकता था। सूत्राों का दावा है कि हुमायूं के सम्बन्ध कुछ संदिग्ध लोगों से भी रहे हंै। इतना ही नहीं हुमायूं का एक दामाद मुम्बई बमकांड में जेल की हवा भी खा चुका है। इसके अतिरिक्त हुमायूं स्वयं कुछ मामलों में वांछित रहा है जिसकी तलाश इंटेलीजेंेस ब्यूरो, एटीएस और एसटीएफ काफी समय से कर रही थी। इतना ही नहीं उसके परिवार वालों पर भी खुफिया विभाग की नजरें लगी हुई थीं। बताया जाता है कि वह जब भी कानपुर आता है स्थानीय पुलिस के कई लोग हुमायूं के सम्पर्क में रहते हैं जो खुफिया विभाग की गतिविधियों की जानकारी देते रहते हैं। मुखबिरी करने के एवज में इन लोगों को हुमायूं की ओर से मोटी रकम इनाम के तौर पर दी जाती है। यही वजह है कि विगत मई के महीने में हुमायूं नजर जब कानपुर आया तो उसके करीबी वर्दीधारियों ने उसे सचेत कर दिया लिहाजा हुमायूं नजर दो दिनों तक अपने घर पर न रहकर अपने एक नजदीकी रिश्तेदार के यहां रहा। मामला शांत होते ही वह पाकिस्तान फरार हो गया। इन दो दिनों के बीच वह कानपुर शहर के पॉश इलाकों की बेशकीमती जमीनें कौड़ियों के भाव बेच गया। बेची गयी सम्पत्ति की कीमत लगभग ३५ करोड़ के आसपास बतायी जा रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक हुमायूं नजर कराची के मिलेट्री एरिया में एक ब्रिगेडियर की आलीशान कोठी में रहता है। फिलहाल हुमायूं नजर खुफिया तंत्रा की तथाकथित सक्रियता को मुंह चिढ़ाता हुआ आराम से पाकिस्तान फरार हो गया और खुफिया तंत्रा ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए हुमायूं नजर के बारे में और अधिक जानकारी बटोरने की बात कर रही है। साथ ही जिन लोगों को हुमायूं ने जमीनें बेची हैं उन्हें भी कार्रवाई की जद में लाने की बात की जा रही है। हालांकि खुफिया विभाग और स्थानीय पुलिस का संयुक्त अभियान विगत मई माह में ही शुरू हो जाना था लेकिन दो माह बीत जाने के बाद भी न तो हुमायूं की जमीन खरीदने वालों पर गाज गिरी और न ही उसके बारे में कोई खास जानकारी ही खुफिया विभाग जुटा सका। इस मामले में कई अनुत्तरित प्रश्न ऐसे हैं जो प्रदेश की खुफिया पुलिस को तो कटघरे में खड़ा करते ही हैं साथ ही स्थानीय प्रशासन को भी संदेह के दायरे से दूर नहीं किया जा सकता। जानकार लोगों की मानें तो इस मामले में रजिस्ट्रार कार्यालय के कर्मचारी भी देशद्रोही के साथ मिले हुए हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो तमाम जानकारियों के बावजूद हुमायूं नजर शत्राु सम्पत्तियों की रजिस्ट्री आसानी से कैसे करवा देता जबकि हुमायूं नजर की कारगुजारियों की जानकारी रजिस्ट्रार कार्यालय को भी पहुंचायी जा चुकी थी। लिहाजा खुफिया विभाग की कार्रवाई की जद में रजिस्ट्रार कार्यालय भी होना चाहिए था लेकिन न तो खुफिया विभाग ने कोई कार्रवाई की और न ही स्थानीय पुलिस ने ही इस मामले में रजिस्ट्रार कार्यालय के कर्मचारियों से पूछताछ की जहमत उठायी।
फिलहाल इस पूरे मामले में जिस तरह से पाकिस्तान का एक नागरिक भारत आकर आसानी से ३५ करोड़ की शत्राु सम्पत्ति बेचकर चला गया उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के खुफिया तंत्रा में देशद्रोहियों के मुखबिरों की फौज तैनात है।

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